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Ravi Sadhwani

Children Others

1.0  

Ravi Sadhwani

Children Others

एक और बार

एक और बार

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वो एक और बार ही था, कब आखरी बार हो गया

पता नहीं चला की कब, वो बीती बात हो गया ।


घंटी बजी थी फिर एक रोज़

कंधो पर बस्ते का बोझ

आंखों में थे मीठे सपने,

कहा गयी बचपन की मौज


बिस्तर से चिपके रहने की इच्छा हमें लजाती थी,

फ़ोन के बदले मां गा गाकर स्वयम हमे जगाती थी,

स्कूल न जाने की जिद से हमने उसे सताया है,

आज जिद पूरी करके देखो हमने कुछ ना पाया है।


टाई बेल्ट हाथ में लेकर रिक्शा में हम बैठ गए,

उतरे भागे गिरे फिसलते हम स्कूल के गेट गए,

जिन सपनो के लालच में मुझे बड़े होने की जल्दी थी,

वो ही सपने मेरे उन अच्छे दिनों को समेट गए।


एक और बार ही तो मैं होमवर्क करना भूल गया,

बस एक ओर बार ही तो दोस्त ने मेरा काम किया,

जल्दी लिखकर आधा अधूरा ही कॉपी जमा कर आये हम,

कल से पूरा कर आएंगे, टीचर को कह आये हम ।


एक और बार बोतल भरने हम क्लास से निकले,

उसे देख बायो लैब के, बाहर फिर हम फिसले,

बस एक बार ओर जाने दो उन बरामदों मे हमको,

जहां वो कहती थी हमसे, "चॉक्लेट या तू खुद लिखले।


बस एक और बार ही तो, घंटी बजी ओर हम भागे,

खाली क्लास होती लड़ाई, कागज के जहाज बनाके,

एक ओर बार ही तो हुई वो धक्का मुक्की हम सब में

अब दिल मत तोड़ो तुम मेरा उस एक आखरी बार बताके।


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