टिन्नी
टिन्नी
सुबह की सैर के लिए
अक्सर बाग़ में टहलने जाता हूँ
ताज़ी पौन अहसास दिलाती है
जिंदगी के सिवा कुछ और भी है जहां में
कई बार एक नहीं सी गिलहरी को मैंने
अपने आस-पास फुदकते हुए देखा है
उससे नज़र मिलाना जैसे दिनचर्या थी
आज भी जैसे ही उसकी नज़र मुझ पर पड़ी
पलक झपकते ही
फुदक कर मेरे करीब आ गयी
हर बार ऐसे लगता जैसे
उससे कोई पुरानी जान पहचान है
खाने के लिए उसको
मूंगफली के दाने दिया करता,
जिसे चाव से खाती, मन को चैन मिलता
बाग़ में कहीं गुलाब की पंखुरी मुस्कुराती है
कहीं हरी दूब में ओस दमकती है
कोयल की कूक, गौरैया की चहक भी है
मगर नन्हीं गिलहरीं का कोई जवाब नही
कितनी चंचल, कितनी शैतान
मैंने इसका नाम "टिन्नी" रक्खा है
बाग़ में जब तक उसे न देख लूँ
मेरी सुबह की सैर जैसे अधूरी है।
