दिनकर
दिनकर
भानु कहूँ या कहूँ प्रभाकर या
फिर कहूँ -मैं
दिनकर -तुम्हें,
सारे नाम तुम्हारे हैं।
चाहे दिवस का हो आगाज,
या फिर हो -अवसान दिवस का,
आते -जाते बिखराते हो --तुम,
सिंदूरी सी आभा इस जग में।
भानु कहूँ या कहूँ प्रभाकर,
रोज रोज आते हो तुम जग में,
बनकर आशा और उम्मीदों का सवेरा,
वहीं...
जाते जाते देकर -जाते हो,
आस और विश्वास की संध्या,
चमकीली सिंदूरी आभा के रूप में,
भानु कहूँ या कहूँ प्रभाकर,
या फिर कहूँ --मैं दिनकर तुम्हें।।