शशि कांत श्रीवास्तव

Inspirational

4.2  

शशि कांत श्रीवास्तव

Inspirational

दिनकर

दिनकर

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भानु कहूँ या कहूँ प्रभाकर या

फिर कहूँ -मैं 

दिनकर -तुम्हें,

सारे नाम तुम्हारे हैं।

चाहे दिवस का हो आगाज,

या फिर हो -अवसान दिवस का,

आते -जाते बिखराते हो --तुम,

सिंदूरी सी आभा इस जग में।

भानु कहूँ या कहूँ प्रभाकर,

रोज रोज आते हो तुम जग में,

बनकर आशा और उम्मीदों का सवेरा,

वहीं...

जाते जाते देकर -जाते हो,

आस और विश्वास की संध्या,

चमकीली सिंदूरी आभा के रूप में,

भानु कहूँ या कहूँ प्रभाकर,

या फिर कहूँ --मैं दिनकर तुम्हें।।



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