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शशि कांत श्रीवास्तव

Tragedy

4.7  

शशि कांत श्रीवास्तव

Tragedy

"वजूद "

"वजूद "

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कुछ पन्ने थे जिंदगी के

लिए हुए शक्ल किताब की,

वो फड़फड़ा रहे थे,

तो कुछ मचल रहे थे,

वहीं,ढूंढ रहे थे,

वजूद अपना....।

इस जीवन में,

हाँ,वो जिंदगी के पन्ने ही तो थे

कुछ खाली खाली से -तो

कुछ भरे भरे से -जीवन के झंझावतों से,

हाँ, कुछ पन्ने थे जिंदगी के।

जो ऊकेरते थे फलसफ़े जिंदगी के,

उभर कर एक आकृति आती थी वजूद में,

तभी दिल ने कहा

हाँ , वो तो वही है

जिसने कभी साथ छोड़ा था तुम्हारा

अपनी वजूद की खातिर...,

हाँ , वो कुछ पन्ने थे जिंदगी के,

हाँ , वो कुछ पन्ने थे जिंदगी के ।।



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