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Satyam Kumar Srivastava

Abstract

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Satyam Kumar Srivastava

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एक ख्वाहिश है मेरी

एक ख्वाहिश है मेरी

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मेरे कुछ अतीत के पन्नों में,

चाहतों के रंगों में

यादों के इस मंज़र से,

जिंदगी की किताबों तक

अक्सर मैंने ढलती साँझ ही देखी।


बैठ किसी किनारों पर

बहती पवन के धारों में

झिलमिलाती उस दिव्य

लालिमा को ढलते देखा

ना कोई अब कलरव है

ना अब कोई झुंड


चेहरे पर मुस्कान लिए

खिलखिलाती सुबह की

मुस्कान को ओझल होते देखा।


उस वक्त ऐसा लगा की

समस्त सृष्टि धीरे-धीरे

अंधकारमयी रात की

चादर में सोने वाली हो


उस वक्त मेरी आशा की

सीमा भी मुझसे दूर थी

बस एक ख्वाहिश है

मेरी जल्दी से ये रात ढले

और फिर से वापस आ जाये

वो मुस्कुराती खिलखिलाती सुबह।


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