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Satyam Kumar Srivastava

Abstract

5.0  

Satyam Kumar Srivastava

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मन की बात

मन की बात

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मन की बातें मन ही जाने मन अकूलित बलखाये ,

क्षण भर में ये घूम आये देखो सारा संसार,

हवा से तेज भागे है मन फिर भी थकना पाये ,

मैंने सोचा कह दूँ इस मन अपने मन की बातें,

बहला-फुसला के रोकूँ इस अलबेले पागल को,

ए पागल मसताने मन सुन ले तू मेरी बातें ।

रख दूँ हस्त अगर तुझपे फिर कह दूँ अपनी बातें,

इतने में क्या घटित हुआ बात समझ ना आयी

एक अजब सी ध्वनि कर्ण पे आके फिर टकरायी,

मर्म स्पर्शी बोल क्यो चिन्ता करता है पगले, तनिक समझ ना पाया क्या है माया मन की,

मैंने घबरा के पूछा क्या है तेरी माया ,

मन की बाते मन ही जाने ये है मेरी माया ।


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