मिज़ाज
मिज़ाज
कुछ ग़जब मिज़ाज है तेरा भी,
कुछ अजब मिज़ाज है मेरा भी
माना तू है एक पक्षी जो नभ में
विचरण करता है,
तो मैं भी हूँ एक मानुष जो थल
पर विचरण करता है।
है तू भी कितना ग़जब का,
हूँ मैं भी कितना अजब का
जब-जब तू विचरण करता
तुझ से कोई तनिक न कहता,
पर जब-जब मैं विचरण करता
मुझसे तब सब कहते
है कार्य एक जैसे दोनों के
पर विपरीतार्थक कहलाता है
परख लिया दुग्ध-नीर जिसने,
हंस वही कहलाता है
मिला दिया इनको जिसने
मानुष वो कहलाता है।
तू अपने रंग में रंगा हुआ
मैं अपने ढंग में ढला हुआ
तू है कि प्रतिदिन वही करता
तो मैं थोड़ा मनमौजी सा
कुछ ग़जब मिज़ाज है तेरा भी,
कुछ अजब मिज़ाज है मेरा भी।