मंज़र मन्ज़िल
मंज़र मन्ज़िल
मंज़र मन्ज़िल औऱ तन्हायीं बेख़बर मुक़द्दर सा तेरा,
ख्वाब ख़्वाहिश औऱ रूबाई बेअसर मुक़द्दर का हुआ।
ज़िन्दगी जीवन औऱ गहराई बेफ़िक्र मंज़ूर मेरे ख़ुदा,
बेख़बर जीवन औऱ इस्तराब बेसब्र मुक़द्दर का हुआ।
रूबरू ज़िन्दगी औऱ वफ़ाई बेकार फिज़ूल ही तेरा,
बिखरें ज़ज़्बात औऱ ज़बान लफ़्ज़ मुक़द्दर का हुआ।
सफ़र पर सफ़र औऱ बेसफ़र बेख़बर यहीं ना तेरा,
जीवन अभी औऱ हार्दिक बेफ़िक्र मुक़द्दर का हुआ।