STORYMIRROR

Hardik Mahajan Hardik

Abstract

3  

Hardik Mahajan Hardik

Abstract

मंज़र मन्ज़िल

मंज़र मन्ज़िल

1 min
151


मंज़र मन्ज़िल औऱ तन्हायीं बेख़बर मुक़द्दर सा तेरा,  

ख्वाब ख़्वाहिश औऱ रूबाई बेअसर मुक़द्दर का हुआ। 


ज़िन्दगी जीवन औऱ गहराई बेफ़िक्र मंज़ूर मेरे ख़ुदा,

बेख़बर जीवन औऱ इस्तराब बेसब्र मुक़द्दर का हुआ।


रूबरू ज़िन्दगी औऱ वफ़ाई बेकार फिज़ूल ही तेरा,

बिखरें ज़ज़्बात औऱ ज़बान लफ़्ज़ मुक़द्दर का हुआ।


सफ़र पर सफ़र औऱ बेसफ़र बेख़बर यहीं ना तेरा,

जीवन अभी औऱ हार्दिक बेफ़िक्र मुक़द्दर का हुआ। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract