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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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अपनों से जंग

अपनों से जंग

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समय कितना तेजी से बदल रहा है

आज अपनापन कम 

जंग ज्यादा हो रहा है।

लोगों में सहनशीलता कम

स्वार्थ और सुविधा का भाव ज्यादा हो गया है,

अपवादों पर न जाइए हुजूर

अब किसी को अपनों से

प्यार जो नहीं रहा है।

अब तो हर रिश्ता बेमानी हो रहा है,

हर रिश्ते को स्वार्थ का तराजू तौल रहा है,

मान, सम्मान, अदब, सभ्यता

हर दिन बेमौत मर रहा है।

यह कैसा समय आ गया है इस जहान में

आदमी खुद से ज्यादा अपनों से जंग कर रहा है,

अपनों के साथ अपना ही अब 

रोज रोज जंग कर रहा है। 



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