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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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प्राणवायु

प्राणवायु

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आज हमें प्राणवायु की 

बड़ी चिंता हो रही है,

क्योंकि अपने प्राणों पर

जब आज बन गई है।


हम आधुनिक हो रहे हैं,

धरती की हरियाली के 

दुश्मन जो बन गये हैं,

कंक्रीट के जंगलों की 

नई श्रृंखला गढ़ रहे हैं।


भविष्य की खातिर

वर्तमान भी बिगाड़ रहे,

धरती माँ का बदन 

खोखला कर रहे हैं।


जल स्रोतों को तो

लीलते ही जा रहे हैं,

नदी नालों पर भी

अतिक्रमण कर रहे हैं।


पशु पक्षियों के ठिकाने

मिटाते जा रहे हैं,

एक एक कर पशु पक्षियों के

अस्तित्व मिटाते जा रहे हैं।


अपनी सुविधा के लिए

कसाई बनते जा रहे हैं,

खुद ही खुद के दुश्मन

खुशी खुशी बन रहे हैं।


हम क्या कुछ मिटा रहे हैं

कभी सोचा ही नहीं,

खुद पर हुआ प्रहार

तो सदमें में आ रहे।


जाने कितनी जानों के

कातिल बने हैं हम,

खुद पर जब बन आई

तो घिघिया रहे हैं हम।


अपनी खुशी की खातिर

वायु का न किया ध्यान,

आज वायु ही हमें देखो

पहुंचा रहा शमशान।


आज वायु की बड़ी

हमें चिंता हो रही,

वो भी सिर्फ़ इसलिए कि

खुद की जान जब

आफत में पड़ी है।


प्राणवायु के मेल का

मूल्य अब समझ आया,

वायु बिना प्राण शून्य है

आज मानव समझ पाया।


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