सपना
सपना
हर रात आता है एक ही सपना,
कब होगा घर मेरा अपना।
क्या उसे सजाने का मौका मिलेगा कभी,
या कुछ तैयारी करे हम अभी।
हर रैन आता है एक ही ख्वाब,
कल सुबह उठके क्या दूँ जवाब,
काश होती मेरी ज़िन्दगी भी लाजवाब।
एक ही थी मेरी चाहा,
कैसे मानूं मैं अपने माता पिता का कहा।
जीवन की पूंजी है वो मेरे,
प्यार उनका मुझे हमेशा घेरे।
हर रैन उठती है मन में एक ही तरंग,
कैसे करूँ अपने विचारों को अतरंग,
और सुधारू अपना रूप रंग।
हर रात आता है एक ही स्वप्न,
कैसे बंद करुँ मैं देखना दुःस्वप्न।
उठना है सुबह बजे पाँच,
बात करनी है हमेशा साँच।।
