कभी स्वीकार न किया
कभी स्वीकार न किया
मन में अहंकार तांडव कर रहा
सपनों का मुकाम हर ढहा
हाय रे मानव तेरा जीवन कभी
सच्चाई को स्वीकार न किया
कभी
सच्चाई को स्वीकार न किया
प्रकृति तेरे बस में नहीं
तेरे कदम बस है यहीं
क्या नापेगा संसार सारा कभी
ब्रम्हांड का दीदार न किया
हाय रे मानव तेरा जीवन
कभी
सच्चाई को स्वीकार न किया
कभी
सच्चाई को स्वीकार न किया
यों संत राग अलापते चले गये कई
तरुवर मन हर बहार पुलकित नयी
क्या बांटेगा सुकून उड़ते पत्तों का झोंका
उम्र गया पर मोह का आसार न गया
हाय रे मानव तेरा जीवन
कभी
मोह का आसार न गया
कभी
सच्चाई को स्वीकार न किया
दर दर भटक रहा दुख से भागा
जहाँ गया अतृप्त सुख ही माँगा
देख अपने भी छोड़ आया तू पिछे
साथ रहते प्रेम का व्यवहार न किया
हाय रे मानव तेरा जीवन
कभी
सच्चाई को स्वीकार न किया
कभी
सच्चाई को स्वीकार न किया।