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Neeraj pal

Abstract

4.5  

Neeraj pal

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कृपालु- गुरु।

कृपालु- गुरु।

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जब-जब तेरे दर पर आता, खाली झोली भर कर लाता।

आत्म सुख की अनुभूति है होती, चंचल मन ठहर जाता।।


 तेरी निगाह का वह जादू, आँख बंद, अश्रु हैं बहते ।

भीड़ भरी राहों से भटका, पल भर में मार्गदर्शक वह बनते।।


 फँस गया था जमाने की गर्त में, सूझ न पड़ता था कोई हमारा।

 तुमने तो अपना बनाकर, रोशन कर दिया संसार हमारा।।


 भिक्षुक बन दर-दर मैं भटका, मिल न सका कोई ठिकाना।

 कृपा तुम्हारी इस कदर है बरसती, याद करता रह गया जमाना।।


 माया रूपी आँधी ने, बुझा दिया था हृदय चिराग हमारा।

 वरदहस्त जिसने भी पाया, प्रकाशित कर दिया जीवन सारा।।


 अवसाद ग्रसित बादलों ने, छा दिया अंधकार घनेरा।

 गुरुमंत्र तुमने ऐसा सिखलाया, बुद्धि विवेक ने किया सवेरा।।


सत्, रज्, तम् के चक्कर में, असुरावृत्ति को ही अपनाया।

" नीरज" कर ले गुरु- चरनन की सेवा, जिसने तेरा भाग्य जगाया।।



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