पहचाना है
पहचाना है
ऐ माँ तुम्हीं ने मुझे अपनी,
कोख में पाला है जतन से
हर सांस, लहू से सींचा है,
तुम्हारी ही छवि बना कर
ईश्वर ने अपनी अदभुत कृति
को उतारा है ज़मीं पे
पहचाना है तुम्हीं ने
तुम हमनशीं,
हमराज भी हो
हो रात का श्रृंगार,
सुबह का साज भी हो
तुम हो मन में
और दिल के
धड़कनों में
तुम ही इति, भी हो
तेरे दम पर मैं भी
दम भर मुस्कुराऊँ, गीत गाऊ.
जोड़ तोड़ कर लफ्जों को
गज़लें बनाऊं, गुनगुनाऊँ
ऐ माँ तूने ही मुझे पहचाना है।
