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Sajida Akram

Inspirational

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Sajida Akram

Inspirational

"बिटिया"... कविता

"बिटिया"... कविता

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बिटिया के न होने से, 

घर में अब

नहीं लगती रौनकें 

मुंडेर पर नहीं गाते पंछी,

बगिया की बेलों की रफ्तार कम, 

हो चली है। 


चुग्गे का इंतज़ार करते कबूतर,

अब करतब नहीं दिखाते हैं।

घर की सजावट भी अब पुरानी सी

लगती है। 

चांद- सूरज की खूबसूरती भी

हमारी बूढ़ी आंखें आंक नहीं 

पाती हैं।


चाय की प्याली से जायका, 

गायब हो चला है। 

अब चिट्ठी लेने 

कोई नहीं दौड़ता है। 

त्यौहार के आने से पहले,

तैयारी का त्यौहार अब नहीं

मनाया जाता है। 


मेले बिना चहल-पहल के

गुजर जाते हैं।

ख़ुशियों के आने की आहट

अब नहीं होती है। 

बिटिया के ना होने से, 

रौनकें अब नहीं लगती।


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