"सुर्ख गुलाब"(ग़ज़ल)
"सुर्ख गुलाब"(ग़ज़ल)
सुर्ख गुलाब की नजाकत
से आज फिर रूबरू हुए
वो लम्हा हमारी यादों के
दायरे में महफ़ूज़ है ..!
जब हुई थी तुमसे पहली
मुलाक़ात और थाम के,
हमारे हाथों में दिए थे
"सुर्ख गुलाब" किया था
अपने प्यार का इज़हार
शर्मों- हया से ये रूख़सार,
सुर्खरुह हो गए थे।
नज़रों ने भी अपनी पलकों
का चिलमन गिरा कर दिया था
प्यार की क़ुबूलियत का पैग़ाम
बस उसी ही लम्हे से यूँ ही,
सहेज ली है उन सुर्ख गुलाब
को अपनी हमसफ़र डायरी में
तुम्हारे प्यार की तरह ही आज
भी शादाब है वो "सुर्ख गुलाब"
तुम्हारे प्यार में कई ग़ज़लें लिख ली है।