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Mukesh Gaur

Romance

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Mukesh Gaur

Romance

मेरा ख्वाब और तुम

मेरा ख्वाब और तुम

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दिल और जोर से धड़कता है

और सांसे मेरी थम सी जाती है;

जब भी तुम अपने फूल जैसे कोमल

उन लबों को मेरे लबों पर रखती हो;


बदन के तुम्हारे हर एक कटाव पर

जब उंगलियां मेरी चलती है;

कमर के तुम्हारी थिरकन ऐसे लगती हैं मानो जैसे

मछली कोई पानी से निकलने पर तड़पती हैं;


अपनी उन गीली ज़ुल्फो से जब

तुम मेरे चेहरे को भिगाकर मुझे नींद से जगाती हो;

लगता है कि जैसे तुम मुझे

इशारों इशारों में अपने पास बुलाती हो;


जब भी बाज़ार में पकड़ता हूं हाथ तुम्हारा

तुम शर्मा कर के अपना हाथ छुड़ती हो;

अकेला पाकर बाहों में अपनी तुम कुछ यूं जकड़ती हो

कि जैसे भूल कर सबकुछ बस मुझमें समाना चाहती हो;


ख्वाहिशें तो और भी बहुत सी है

इस दिल ए नादान की मगर अफ़सोस

वो पूरी नहीं हो सकती क्योंकि तुम अब इस दुनिया में

सिर्फ मेरे ख़्वाब और ख़यालो में साथ रहती हो!



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