नज़रों की बातें
नज़रों की बातें
जब भी मैं उससे मिलने जाता हूं
शब्दों में नहीं महज़ आंखे से बतियाता हूं
मेरे हर सवाल का वो बड़ी आसानी से जवाब देती है
अपनी उन आंखों के इशारे से हर मुश्किल हल कर देती है
ज्यादा पढ़ी लिखी हुई नहीं है वो मगर ना जाने
कैसे अपनी आंखों से मेरे चेहरे को पढ़ लिया करती है
ज़ुबान से तो कुछ नहीं कह पाती है वो
मगर आंखों से बिना बोले ही सब कह देती है
सोलह श्रृंगार की कोई ज़रूरत नहीं है उसे
दिल चुरा लेती है जब भी वो आंखो में काजल लगाती है
ख़ुशी हो या फिर दिल में किसी बात की टीस हो
छुपाना चाहती तो है मगर उसकी आंखे सब बयां कर जाती है
आवाज़ नहीं दी है भगवान ने उसे फिर भी
अपनी उन बड़ी बड़ी आंखों से वो सारी बात करती है
कितना चाहता हूं उसे मैं ये उसे बता नहीं सकता
मगर फिर भी वो कभी भी शिकायत नहीं करती है
एक दूजे के साथ ना होकर भी हम पास रहते हैं
मिलने की तो चाहत बहुत है मगर मिल नहीं पाते है
मगर फिर भी जब भी मैं उससे मिलने जाता हूं
शब्दों में नहीं महज़ आंखें से बतियाता हूं।