ज़िम्मेदारियों का सफ़र
ज़िम्मेदारियों का सफ़र
ज़िम्मेदारियां जब तोड़ रही हो अंदर से
तो बाहर से खुद को मजबूत दिखाना;
सब कहते है कि होते है हम लड़के पत्थर के बने
आसान है क्या चोट लगने पर भी मुस्कुराना ?
शरीर पर नहीं चोट लगती है दिल पर हमारे
चाहते है हम भी किसी के साथ अपना दर्द बांटना;
मगर चाह कर भी नहीं दिखा सकते ज़ख्म अपने
क्योंकि लड़को को रोने का हक़ कहां देता है ये ज़माना ?
घर की चिंता हमको भी होती है लेकिन नहीं जताते
कमज़ोर ना पड़े इसलिए छिपाते है सबसे अपनी भावना;
यूं तो सफ़र पर निकले है मगर मंज़िल का पता नहीं
रास्ता कुछ दिख नहीं रहा है और ना ही कोई ठिकाना;
ज़िम्मेदारियां जब तोड़ रही हो अंदर से
तो बाहर से खुद को मजबूत दिखाना;
सब कहते है कि होते है हम लड़के पत्थर के बने
आसान है क्या चोट लगने पर भी मुस्कुराना ?