उलझा दिल
उलझा दिल
कैसे सुलझाऊँ अपने उलझे दिल को ?
जो उलझ गया तेरे झूठे वादों से मिल के।
आना चाहूँ मैं भी किसी घनी रात में तेरे पास,
पर ना आ पाऊँ ओढ़े हुए शर्म ओ लाज की हयात।
तू बिना छुए मुझे फिर जाने ना देगा,
अपनी ज़िद से मेरा रोम - रोम पिघला के हँसेगा।
मैं गिर जाऊँगी बर्फ बनके तेरी मय के प्याले में कहीं
तू गटक लेगा मुझे एक साँस में अपने ज़िस्म में कहीं।
नशा तुझमे घुल के तब और चढ़ेगा,
तेरी हर ख्वाइश को पूरा करता रहेगा।
उलझे इस दिल में बेचैनी की जो शमा जलेगी
वो तेरे साथ ही झूठे वादों की कसमें धरेगी।