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Sajida Akram

Romance

3  

Sajida Akram

Romance

"रफ़ूगार"(ग़ज़ल)

"रफ़ूगार"(ग़ज़ल)

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वो रफूगार भी कहां तक करें ,

मुझ पर मेहनत,

ज़ख़्म एक सिलता नहीं दूसरा लग जाता है।

ज़िन्दगी क़दम पर क़दम 

इम्तिहान लेने पर तूली है।

ज़िन्दगी ने दिये इतने ज़ख़्म की एक भरता नहीं ,दूसरा लग जाता है ।

दर्द की धूप से चेहरे को निखर जाना था

ज़िन्दगी यूं दूर खड़ी मुस्कुरा रही थी।

जैसे उसे ख़बर थी कि हम विसाल और हिज्र इक साथ चाहते हैं।


ऊर्दू लफ़्ज़

रफूगार= फटे कपड़े सिलने वाला

ज़ख़्म=घाव

इम्तिहान=परीक्षा

विसाल=मिलन,संयोग 

हिज़्र=बिछड़ना


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