गज़ल
गज़ल
रातों को ख्वाबों में
इस तरह गुजरता है,
तू जैसे कोई ख्वाब नहीं
हकीकत है, तू
बता दे तू ही मुझे इसे इश्क
कैसे ना मैं कहूँ
हार बैठे हैं दिल अपना,
इश्क में ये कातिल
तू ही बता गुनहगार अब
किसे मैं कहूँ
बेसब्री से इंतजार रहता है
दीद को तेरे
इसे फिर बैचेनी ना कहूँ
तो क्या कहूँ
तेरे नाम से धड़कता है
दिल इस तरह
तू ही बता इन धड़कनों को
काबू कैसे मैं करूँ
इसे इश्क फिर कैसे ना मैं कहूँ
आँखों के सामने रहता है
तू बन कर आईना
ये अजनबी बता तुझे अपना
कैसे ना कहूँ
तेरी तलाश में गुजरे जो हम
तेरी गलियों से
देख कर सूनी गलियों को
बता दिल को दिलासा कैसे मैं दूँ
हाँ है यही इश्क, यही मोहब्बत
नाम तेरा दिल पर लिख कर
बता मैं दूँ
हम तो खुदा समझ बैठे हैं
तुझ को ये दिलनशीं
फिर तेरी इबादत कैसे ना मैं करूँ
बन जाए तू मेरा हम सफर
हार जाए हम सब कुछ तुझ पर
अधूरी हसरतों को अब पूरा मैं करूँ
हर ख्वाब, हर रात, हर दिन
हो जाए तेरे
बता अब इस मोहब्बत को
मुकम्मल कैसे मैं करूँ!

