महिला दिवस (नारी)
महिला दिवस (नारी)
हो ईश्वर की तुम अनूठी रचना
हो ईश्वर की तुम अनूठी रचना
हाँ तुम ही वो नारी,
जिसका जन्म इस सृष्टि पर है हुआ
कौन कहता है नारी तू तो है
कमजोर और अबला
तिनका - तिनका जोड़कर प्यार का,
बुनती है एक सुन्दर परिवार का घोंसला
बनाए हुए इस सुन्दर घोंसले का
तुम हो विश्वास और हो आस्था
हो ईश्वर की तुम ऐसी अनूठी रचना
ना कुछ खोने की,
ना चाहत की कभी कुछ पाने की
हर दर्द को दफन कर सीने में,
ना छलकने दी रवानी आँखों की
हाँ नारी तुम ही तो हो जननी जगत की
मान - सम्मान, प्रतिष्ठा तुम ही हो
हर घर की
सपनों की डोर लिए हाथ में,
उड़ने की ख्वाहिश
हर नारी दिल में किया करती है
अपनों के खुशियों की खातिर
खुद के सपनों को कुर्बान ये कर देती है
परम्पराओं से जकड़े हुए
रिति रिवाजों की जंजीरों में
बंध कर रह जाती है
निभाते- निभाते इन परम्पराओं को
फिर हर सितम वो सह जाती है
कभी बेटी, कभी बहन, कभी माँ तो कभी बहू
हर रूप में अपने अस्तित्व को ढाल देती है
मान मायके का कभी रखती है तो
सम्मान देना ससुराल को ना भूलती है
भूला कर अपने वजूद को
ना जाने कितने फर्ज़ ये नारी निभाती है
ममता की मूर्त कभी बन जाती है
कोमल हृदय होता है इसका
अपनों के लिए प्यार दिल में समंदर जैसा
बन जाती है कभी कठोर ये भी
टूट जाता है जब सब्र बाँध का
करता है जब कोई अत्याचार इस पर
बन जाती है तब झाँसी की रानी
अत्याचार करने वाले नर को
देती जन्म भी ये ही है नारी
पी कर घूंट जहर का
कभी बन जाती है , मीरा प्यारी
हर रिश्तों की ताकत है, नारी
घर को स्वर्ग बना देती है, नारी
तभी तो शक्ति का नाम है, नारी
तभी तो शक्ति का नाम है, नारी
