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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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तेरे होने का एहसास

तेरे होने का एहसास

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शायद अब कभी लौट ना पाऊं खुशियों के बाजार में,

गम ने ऊंची बोली लगाकर खरीद लिया है मुझे…


कुछ ना बचा मेरे इन दो खाली हाथों में,

एक हाथ से किस्मत रूठ गई,

तो दूसरे हाथ से मोहब्बत छूट गई।


जिंदगी जला दी हमने जैसी जलानी थी,

अब धुंएँ पर तमाशा कैसा और राख पर बहस कैसी!!


गम यह नहीं की वक्त ने साथ नहीं दिया,

गम यह है कि जिसको वक्त दिया उसने साथ नहीं दिया।


टूट कर चाहना और फिर टूट जाना,

बात छोटी है मगर जान निकल जाती है


बाद तेरे जाने के मर गई ये देह

जो ज़िंदा बचा मेरी रूह में वो था

“तेरे होने का एहसास”


याद आते हैं तो फिर टूट के याद आते है


याद आते हैं तो फिर टूट के याद आते हैं

गुजरे हुए लम्हे, बिछड़े हुए लोग


कर के बेचैन फिर मेरा हाल ना पूछा

उसने नजरें फेर लीं मैंने भी सवाल ना पूछा


हर रिश्ते में बस यही गिला है,

हमें कोई हम सा नहीं मिला है


अच्छी थी कहानी मगर अधूरी रह गई,

इतनी मोहब्बत के बाद भी दूरी रह गई..


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