ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
आज ज़िन्दगी के मुताल्लिक मन में एक ख्याल आया,
क्या है ज़िन्दगी?? मन में एक सवाल आया
कभी सूरज की किरणों की तरह चमकती है ज़िन्दगी
कभी सुहागन की चूड़ियों की तरह छनकती है ज़िन्दगी
कब, कौन, कहाँ, कैसे जी रहा, इसका हिसाब नहीं
पर मुट्ठी से रेत की तरह बिखरती है ज़िन्दगी
कौन कितना खुश है, कौन कितना उदास
कौन किस से दूर है, कौन कितने पास
मेहनतों का मोल क्या इसका आभास नहीं
पर सोने की तरह आग में निखरती है ज़िन्दगी
कौन हूँ मैं, खुद को पहचानता ही नहीं
वजूद अपने होने का मैं जानता ही नहीं
निकलता हूँ रोज़ मैं करने अपनी तालाश
होंद की गहराइयों से गुज़रती है ज़िन्दगी
मेरी होंद की गहराइयों से गुज़रती है ज़िन्दगी।