सखी
सखी
करती जो दूर मेरा सूनापन
खेल के जिस संग बीता बचपन
सुख दुःख की जो पहरेदार
है वो मेरी सखी, मेरा संसार
छोटे चकलों से आटा बेलते
गुड्डे गुड़ियों के संग खेलते
आने से महकता घर परिवार
है वो मेरी सखी, मेरी संसार
फिर खेलते खेलते रूठ जाना
थोड़ा लड़ के फिर मनाना
जिसकी नोक झोक में भी था प्यार
है वो मेरी सखी, मेरी संसार
खेलते खेलते फिर हो गयी बड़ी
रोई बहुत मैं वो जिस दिन डोली चढ़ी
ले गया उसे कोई गुले गुलज़ार
है वो मेरी सखी मेरा संसार।