मायका
मायका
हुई भोर दिन रहा सुहाना
आनंद का भी था नहीं ठिकाना
हज़ारों अरमान दिल में समाय के
लेने खुशियाँ मैं पहुँची मायके
यादें जुडी जहाँ बचपन की
बातें थी अपने लड़कपन की
कितनी मीठी कटती थी रात
जब दादी सुनाती रानी की बात
चलती थी बेशक लेकर सोटी
तेल लगा कर करती मेरी चोटी
कुछ लड़कियां गुड़ियों संग खेलें
फेर लगते तीजों के मेले
सखियाँ सब थीं मेरी ख़ास
होती इकट्ठी पीपल के पास
भुलाये नहीं जा सकते भूले
सावन में पींघों के झूले
घुमाके वो खुशियों की चाबी
किकली डालती ननद भाभी
बैठ के जब चरखा कातें
करती अपने ससुराल की बातें
पूछती सखी तू है किस हाल में
मैंने कहा खुश हूँ ससुराल में
क्या खूब था नज़ारा पनघट का
पनहारिन नदी से भर्ती मटका
दिन थे वो बहुत हसीन
रातें भी थी खुश नसीब
याद आते वो सब बहन भाई
सोते आँगन में डाल चारपाई
दिलकश था उन दिनों का ज़ायका
लेने खुशियाँ मैं पहुँची मायका।