हमारे देश का किसान (हमारा अन्नदाता)
हमारे देश का किसान (हमारा अन्नदाता)
माना कि जीवन देने वाला वो
दाता हैं,
माना कि जीवन देने वाला वो दाता हैं,
लेकिन धरती की मिट्टी से इनका भी गहरा नाता हैं,
बो कर बीज धरती की कोख में
अन्न पैदा करने वाला
वो किसान हमारा अन्नदाता हैं,
गरीब मज़दूर और किसान का मोल समझ ना कोई पाया हैं,
बाँट अन्न को देश भर में
खुद भूखा सो जाता हैं,
धरती पर हम मनुष्य का भगवान यही कहलाता हैं,
तपती धूप हो या हो मौसम सर्दी का
खेतों में हल को चलाकर, बहाकर अपना खून पसीना
इस मिट्टी में फसलों को उगाता हैं,
धरती की माटी के कण - कण से यारी ऐसी रखता हैं,
ऋतु चाहे आए कोई भी,अपनी जान की सोचे बिना
खेतों की रखवाली ये करता हैं,
चाहे खुद के घर की छत से टपकता रहता पानी हैं,
फिर भी अपनी फसलों के खातिर
मेघों के बरसने की रब से दुआ ये करता हैं,
ऐसा हमारा ये अन्नदाता हैं,
फिर भी न क्यों कोई इनके हक़ में लड़ता हैं,
अपने अधिकार,माँगों की खातिर
आवाज़ उठाता सड़कों पर आज
भटक रहा हैं,किसान
होगी इनकी माँगे पूरी देकर झूठे वादे इनको
हर बार बदल जाती हैं सरकार
न कभी होते फिर पूरे इनके अधिकार
राजनीति का सिर्फ मोहरा बन कर रह जाता हैं, किसान
भारत देश के वासियों तिरस्कृत न तुम कभी इनका करना
कहलाता हैं, ये हमारा अन्नदाता
हम पर हैं, परोपकार इनका
सदा आदर इनका हैं, करना
क्योंकि यही है भारत देश का गौरव और सम्मान हमारा
इसलिए शास्त्री जी ने दिया था
जय जवान जय किसान का नारा।
