कविता -दीया और बाती
कविता -दीया और बाती
सुन मेरे जीवन साथी ज़रा
संग चलेंगे इक दूजे के बनकर
दीया और बाती की तरह
लिए जो सात फेरों संग वचन हमने
हर इक वचन को निभाऊँगी मैं पिया
अस्तित्व मेरा तुझ बिन कुछ नहीं है साथी
जैसे बिना दीपक के लौ ना कभी झिलमिलाती
तेरी मोहब्बत के चिराग से दिल मेरा है जगमगाया
जब से साथ मैंने पिया तेरा है पाया
अंधेरी राहों में जब घबरा मैं जाऊँ
हालातों से जब कभी हार मैं जाऊँ
देना हौसला मुझे उम्मीदों का दीया ना कभी तुम बुझने देना
सुन मेरे जीवन साथी ज़रा
संग चलेंगे इक दूजे के बनकर दीया और बाती की तरह
ना कोई तोड़ पाए इस बंधन को
ऐसे विश्वास के डोर से बाँधे रखना
पवित्र प्रेम का है अपना ये बंधन
इतना समझ कर साथी ये रिश्ता यूँ निभा देना
ख्वाहिश है बस इतनी बनकर दीया और बाती
उम्र भर साथ ना तुम कभी मेरा छोड़ना।