ग़ज़ल - तेरे बिन
ग़ज़ल - तेरे बिन
तुझसे की मोहब्बत तो क्या खता हमारी है,
बेतरतीब हो गए तेरे इश्क में इस तरह
ज़िन्दगी तेरे बिन अब काटे नहीं कटती हैं,
चाहे बसा ली है तूने दूर कहीं अपनी बस्तियाँ
लेकिन शक्ल नज़रों में रहती है बनकर कोई आईना
तुझ से मिलने के ख्वाब सजाए हैं आँखों में इस तरह
लगता है डर की कही डूब न जाए ख्वाबों की ये कश्तियाँ
तेरे जिस्म की खुशबू आज भी महकती हैं, मेरी साँसों में ऐसे
कि दश्त-ओ-सेहरा में फूलों की खुशबू महकती हो जैसे
इंतजार में तेरे कट जाए न ये उम्र सारी
हर लम्हा तेरे बिन लगता हैं जैसे हो एक सदी
दिल की धड़कन में इस तरह बस गया हैं
जैसे हर साँसों में बजती शहनाइयाँ हैं
बेरहम न हो जाए कहीं अलफाजों से मेरे तू
सोच यही गुफ्तगू न तुझ से किया करते हैं
सिरहाने रख तस्वीर को तेरी
दिल को यूँ ही बहला लिया करते हैं
खामोश निगाहें ये बयाँ कर जाती हैं
बेईमान आँखों में शराफत आज भी बाकी हैं
तुझ से की मोहब्बत तो क्या खता हमारी हैं
ज़िन्दगी तेरे बिन अब काटे नहीं कटती हैं।

