"अर्पित"
"अर्पित"
सोच रही हूं,"अर्पित"करुँ तुम्हें सारे प्रेम अपने,
जब भी हुई आखें बंद मेरी,इसमें बस तेरे सपने,
तेरी नाराज़गी में मैनें खुद को महफ़ूज पाया है,
तेरी खुशियों में मैनें खुद को ही अब पाया है,
खुशियाँ जो भी है,अब इनमें नाम तुम्हारा है,
चाहत दिल में जो भी हो अब हक तुम्हारा है,
कहना ज्यादा नही,"अर्पित" मेरा सारा प्रेम तुम्हारा है।

