महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि
देव हो अलख निरंजन,
अखि अमर शिव अविनाशी।
गिरिजा पति हे दु:ख भन्जन,
शम्भो हो काशी के तुम वासी।।
जगी समाधि भूतेश्वर की,
शिवजी नें पलक उघाड़ी है।
नारद से जब बोले त्रिपुरारी,
देवी उमा कहां अवतारी हैं।।
दिव्यदृष्टि से नारद नें ढूंढा,
तब सारी सृष्टि निहारी है।
नैना मात की बन बेटी प्यारी,
हिमालय की राज दुलारी है।।
बन कर वर चले वरदानी,
शिव नन्दी के असवारी है।
उमा वरण को चले विशम्भर,
संग में भूत प्रेत भरमारी है।।
देव संग बहे जटा में गंग,
भोले भाल मयंक धारी है।
भंग की तरंग में भोले बाबा,
चले शंकर शम्भो त्रिपुरारी है।।
भस्मी लगी अंग गले में भुजंग,
बाबा बाघम्बर लंगोटी धारी है।
डमक डमक डमरू बाजत,
चले उमंग में भोले भण्डारी है।।
मुण्ड की माल त्रिपुण्ड है भाल,
शिव कानों में कुण्डल धारी है।
बिल्व पत्र शिव चढ़त है तेरे,
शीतल जलधारा शुभकारी है।।
भक्तन के प्रितिपाल भोले शिव,
सदा ये सन्तन के हितकारी है।
"प्रिया"शरण शिव शंकर तेरी,
वारी जनम जनम बलिहारी है।।