प्रेम
प्रेम
नाजुक धागा प्रेम का,
नाजुक मन से थाम
भला भला ही सोचना,
भला मिले परिणाम।
थक कर सूरज जब ढलता है
तेरा प्यार भी रंग बदलता है
सुख -दुःख जीवन में आता है
उगता है और ढल जाता है
ना रुकना कभी थक हार के तू
उग रोज़ नए अवतार में तू
एक दिन ऐसा भी आएगा
जब तू मंजिल पा जायेगा
हूँ साथ सदा विश्वाश तू कर
ओ प्रेम पथिक तू आगे बढ़
जब निशा पहर आ जाता है
नीले गगन में चाँद मुस्काता है
तब प्यार तेरा आगोश में ले
दिन भर की थकन मिटाता है
चलता हूँ तेरे संग सांसो में
बहता हूँ लहू संग नस -नस में
बरसुंगा सदा अमृत बन कर
ओ प्रेम-पथिक तू आगे बढ़।