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Sajida Akram

Children Stories

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Sajida Akram

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"कविता का शीर्षक**सांझ ढ़ले"

"कविता का शीर्षक**सांझ ढ़ले"

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‘सांझ ढ़ले तुम फिर लौट आना,

अपने इन नन्हें परों से “विशाल

आकाश”को नाप कर “घोंसलों” में,

हर दिन यूहीं बैठ कर मेरी हथेली पर

“ऐ नन्हीं चिड़िया” जब चुगती हो,

दाना “चौंक” कर तुम्हारा यूँ ही चारों,

“ओर देखना”…!

थोड़ा डर, थोड़ी सी झिझक,

फिर “बेफिक्री” से मेरी आँखों में

“भरोसा”…

देखना और झटका देना उस “डर” को,

तुम भी “प्यार की भाषा “बख़ूबी,

पहचानती हो.

“सांझ ढ़ले” तुम लौट आना,

“ऐ नन्हीं चिड़िया “……..!



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