अब और किसी का सहारा
अब और किसी का सहारा
मुझे अब और किसी का सहारा नहीं चाहिये
टूटे हुए किनारे का दरिया नहीं चाहिये
सबने लूटा है, मेरी मासूमियत को देखकर
मुझे अब और बहारों का पतझड़ नहीं चाहिये
आज़कल सरल होना ही सबसे बड़ा गुनाह है,
अब औऱ दामन में फूलो का शूल नहीं चाहिये
तन्हाई की महफ़िल में हम यारा रोज़ रोते है
मुझे अब और आंसुओ की अग्नि नहीं चाहिये
खूब देखे हैं मधु और मधुर बोलने वाले शख्स,
मुझे अब औऱ मधु और मधुशाला नहीं चाहिये
मैं हाथ में भले ही पकड़ लूं कमज़ोर सी लाठी
मुझे किसी स्वार्थी हाथ की लाठी नहीं चाहिये
जीवन में अंधेरा है, उजाला भी एकदिन आ जायेगा
मुझे अब औऱ उजाले वाला अंधेरा नहीं चाहिये
ख़ुद की सहायता,अब से ख़ुद ही किया करूँगा
अब औऱ किसी झूठे का प्यार नहीं चाहिये
मुझे अब औऱ किसी का सहारा नहीं चाहिये।
