गुरु दरबार ।
गुरु दरबार ।


तुम को देखूं या तुम में देखूं,
जित देखूं उत गुरु दरबार है,
तीर्थ किये हैं मैंने बहुतेरे,
मिल न सका तुम सा प्यार है !
कभी न भरता ये मन दर्शन को,
शांति से भरा यह भंडार है,
पता नहीं तुम किस लोक से आते,
तृप्ति अनुभूति करते नर-नार हैं !
श्री राम न देखे श्री कृष्ण न देखे,
आदि शक्ति मात जिया का संचार है,
चतुर्भुज रूप गुरु तुमको निहारूँ,
ऐसा "रामाश्रम" रूपी जलधार है !
आत्मज्ञान तुम भरपूर हो लुटाते,
जन-जन में भरता सद-व्यवहार है,
गुरु बिन भवनिधि तराना है मुश्किल,
"नीरज" करता निशदिन करुण पुकार है!