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Neeraj pal

Others

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आत्ममंथन

आत्ममंथन

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डरा -डरा सा यह मन सदा है रहता।

हो गए कुछ अपराध जो नहीं कहता॥


लहर उठी विषयन की अति भयानक।

झुलस रहा घट तपन बन विनाशक॥


अखियां तरस रही बिन दरस तुम्हारे।

किस विधि धुले कुसंस्कार हमारे॥


नयन विहीन हुआ जन्म का अन्धा।

पाप गठरिया बनी जैसे गले का फंदा॥


ज्ञान-विज्ञान बिना मोक्ष नहीं मिलता।

बिन सत्गुरु अज्ञान कभी नहीं मिटता॥


संसार सागर से गुरु ही पार लगाते।

अंतर मन की तपन पल भर में मिटाते॥


श्रद्धा,भक्ति सद्गुरु चरणों में जो लाता।

नीरज, ब्रह्म स्वरूप अध्यात्म ज्ञान हो पाता॥


ଏହି ବିଷୟବସ୍ତୁକୁ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରନ୍ତୁ
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