राम-नाम
राम-नाम
राम-नाम बना सुखदाई, उर भीतर मेरे रमा कीजिए,
श्री चरणों में नित भक्ति देकर ,सेवा-भाव मुझको दीजिए।
हॅूँ असमर्थ,गुणगान तेरे बिन, कैसे कह ,सकूँ,
पूर्ण समर्थ तू ,भव-सिन्धु पार कैसे कर सकूँ,
हे नाथ!अशरण-शरण स्वीकार मुझको कीजिए ।
राम नाम सुखदाई.....
बिन तेरी कृपा, एक पत्ता तक हिलता नही,
बिन तेरे भव-जाल से कोई निकल सकता नही ,
भव-रोग ग्रसित इस तन को ,मुक्ति तुम दीजिए ।
राम नाम सुखदाई.....
मर्यादा पुरुषोत्तम बन तुमने,एक राह है दिखलाई ,
राग-द्वेष को दूर हटाकर, प्रेम-भाव है सिखलाई,
मलिन विचारों भरे, मन को निर्मल तो कीजिए ।
राम नाम सुखदाई......
अंतिम विनय हरि दास की,सबके हृदय में विराजिए,
हर घर में सीता-राम हो ,इतनी कृपा तो कीजिए ,
श्री हनुमान जैसी भक्ति," नीरज"को प्रभु दीजिए ।
राम नाम सुखदाई........