नूतन वर्ष।
नूतन वर्ष।
रहना नहीं देश बिराना है,
ये सोच क्यों घबराना है,
बीते लम्हों से बहुत कुछ सीखा,
नूतन वर्ष को फिर महकाना है।
दिया जो मौका फिर प्रभु ने,
नेकी की राह अपनाना है,
काम-क्रोध,लोभ-माया और मत्सर,
जीवन से दूर भगाना है।
परोपकार परहित सबसे नहीं बनता,
परसेवा युक्त सदा रहना है,
अगर चाहते इस&nbs
p;जन्म से मुक्ति,
ब्रह्मचर्य युक्त जीवन बनाना है।
जीवन रूपी नैया के प्रभु तुम खिवैया,
उनसे नहीं दामन छुड़ाना है,
शुद्ध सरल व्यवहार है जिनका,
प्रभु चरणों में आशियाना है।
मत देखो अभी समय है कितना,
पल भर का नहीं ठिकाना है,
चल पड़ो अब सच्चाई के पथ पर,
"नीरज" मरना तो एक बहाना है।