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Pratibha Shrivastava Ansh

Abstract

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Pratibha Shrivastava Ansh

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होलिका

होलिका

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एक बार फिर,

एक स्त्री,

अपने कुटुम्ब के,

इच्छाओं की भेंट चढ़ी


अपने वरदान के ही,

अंगवस्त्र में जलकर,

वो स्त्री राख हुई


फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी को,

अग्नि का वरण करने,

होलिका हर बरस आती


पौराणिक कथाओं की,

खलनायिका होलिका,

हमारी बुराइयों का शमन करती


होलिका जलते-जलते भी,

खुशियों के हजारों रंग,

हमारे गालों पर मलकर जाती।


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