अहसास
अहसास
कुछ कहा,
कुछ अनकहा,
कुछ कहते-कहते,
रुक जाना।
इतनी नासमझ भी नहीं,
कि ना समझूँ,
अनकही उन बातों का,
जो आँखों में तैरते,
व जुबान में कैद होते।
अच्छा ही किया,
जो रुक गए,
और थाम लिया,
ढाई आखर प्रेम को।
गर कह दिये होते,
तो शायद,
मायने बदल जाते।
सच मे तुम मंजिल ना थे,
पर कमबख्त दिल,
नहीं मानता।
न जाने क्यों,
यह अब तक तुम,
ढूंढ़ता फिरता।