अनकहा
अनकहा


आधुनिकता के बाज़ार में
बिकते है आज रिश्तें भी
स्वार्थ के आशियाने में
टिकता नहीं कोई रिश्ता
पल-पल बदलते लोग अब
पल-पल बदलते रिश्तें है
कैसे स्वीकार लूँ इस दुनिया में
रिश्ते बेईमान होते है
जिंदा है वो अब तक साँसों में
जो अनकहा एक रिश्ता था