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Ekta Kochar Relan

Abstract

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Ekta Kochar Relan

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जिंदगी खेल नहीं

जिंदगी खेल नहीं

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जब हृदय का टुकडा

गुम हो जाएं भीड़ में

माँ चीख रही हो, 

चिल्ला रही हो

बेहद जालिम लगे तब ये जिंदगी


रस्सी पर चढ़ छोटा बच्चा

जूझ रहा हो जिंदगी से

पेट की खातिर

तो लगा खेल नही जिंदगी

एक बुजुर्ग भीड़ में- 


ले लो बाबू जी चने ले लो

पूरे चने बिखर जाये तभी

बिखरी सी लगे तब जिंदगी

पत्नी बैठी हो पति के इंतजार में

मिले न बोर्डर से वापिस आने का पैगाम


सूनी सी लगे तब जिंदगी

गरीब को पाया जब हॉस्पिटल मे 

याचना करते हुए डॉक्टर से

कि कल दे दूंगा सारे पैसे


अभी बचा लो मेरे बच्चे की जान

आसान न लगे तब जिंदगी

ससुराल से बेटी जब लौट आये वापिस

बाेझिल सी लगे तब जिंदगी


वक्त सूइयों के साथ रखता रहे हर कदम

कभी धूप कभी छांव लगे ये जिंदगी

खेल नहीं ये जिंदगी।


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