ज़िंदगी कोई खेल नहीं
ज़िंदगी कोई खेल नहीं
मत उदास तू बैठ,हाथ पर हाथ रख के मत बैठ
ज़िंदगी कोई खेल नहीं,ये याद रख मत बैठ।
बढ़, चलते जा,राह में जितनी भी हो कठिनाई
एक दिन तेरे आगे,सूरज भी लेगा अंगड़ाई।
जो जीवन से हार गया तू,देगा न कोई साथ
ख़ुद ही सम्हलना पड़ता है,बढ़ेगा न कोई हाथ।
उम्मीदों की आस छोड़, विषाद में मत बैठ
ज़िंदगी कोई खेल नहीं, ये याद रख मत बैठ।
छोटी-मोटी बाधाएं यूँ,तुझे डिगा नहीं सकती
संकल्पित गर मन हो तो, तुझे गिरा नहीं सकती।
भावों को तू दरकिनार कर,नवसृजित इतिहास बना
व्यथित हृदय को त्याग कर, अपना आकाश बना।
भाग्य को आधार बना कर, पाषाण बन मत बैठ
ज़िंदगी कोई खेल नहीं, ये याद रख मत बैठ।