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Shalini Mishra Tiwari

Tragedy

4.0  

Shalini Mishra Tiwari

Tragedy

दिल जीतने का हुनर

दिल जीतने का हुनर

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दिल जीतने का हुनर

मुझमें न था शायद

रह गई आरजुएं

कसमसाती हुई

बन गई मैं बस एक 

नदिया की धारा

कितने झंझावतों से 

टकराती रही

चोट लगती रही

तन-मन पर मेरे

उफ्फ न किया फिर भी

मैंने कभी

कितने वीरानों से गुज़री

तन्हा होकर के मैं

साथ मेरे जो आया

वो भी बह से गया

जीत लेती 

दिल किसी का जो मैं

ठहर जाती मैं बस बनकर कहानी



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