न जाने क्यों
न जाने क्यों
बरबस मन मुड़ जाता है
न जाने क्यों तेरी ओर
निकलूँ कैसे सम्मोहन से
पाती न कोई छोर
उलझ उलझ के रह जाती
एहसासों की बदली छाती
बरस बरस के नैना भरते
मन ही मन अकुलाती
है कैसा ये नेह जो तुझसे
जीवन से बिंध गया है
हरपल क्यूँ लगता मुझको
ये एहसास नया है
घूम जो जाता वक़्त का पहिया
कर लेते ख्वाहिश पूरी
नैनों में जी भर,भर लेते
चाहत उनकी अधूरी।।