गजल
गजल
अक्स के आँखों से बहते अश्क को तो देखिए
आप अपनी ही तरह इस शख्स को तो देखिए
बेजुबां है आज जो कल आपकी आवाज थी
बेवफा कहने से पहले नब्ज को तो देखिए
तिलमिला कर रह गया बिकते मुहब्बत देख कर
धमनियों में जल गया जो रक्त को तो देखिए
जो फिकर करता रहा हर शख्स के दुख दर्द का
हँस रहा कितने छिपाए जख्म को तो देखिए
आशिकी में होश इतना भी नहीं लुटता रहा
आ गया औकात पर उस शक्ल को तो देखिए
इश्क कैसे चढ़ गया परवान किसको क्या पता
कॉम का अब तो लगाया गश्त को तो देखिए
छीन लेना हक़ किसी का है नहीं जायज ‘अमर’
हैं लगे जो लोग ऐसे सख्त को तो देखिए।