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Amresh Kumar Labh

Abstract

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Amresh Kumar Labh

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थोड़ी सी पहचान बचा लो

थोड़ी सी पहचान बचा लो

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देखा है किरदार तुम्हारी

अलग-अलग, पर सबसे न्यारी

पाँव डिगे नहीं तूफानों में

आज भला है क्या लाचारी ?


धूल जमें हैं जो अब तन पर

थोड़ा सा बस इसको झारो

थोड़ी सी पहचान बचा लो।


चमक रहें हैं, देख, सितारे

तेरे कोख के प्यारे-प्यारे

देखा तुमने एक नज़र से

ममता माँ की सब पर बारे 

क्या अब सब कुछ यौवन तेरा !


या फिर स्तन सूख गया है ?

बिलख रहे दुधमुंहे को देख

ममता क्यों न पसीज रही है ? 

रहम करो बस थोडा इन पर


थोडा स्तनपान करा दो

थोड़ी सी पहचान बचा लो।


नारी बिन हर नर है अधूरा

नर बिन नारी सम्पूर्ण नहीं है

जो कुछ पाया या फिर खोया

नर की धूरी तू ही रही है


तुम्हें मिले अधिकार तुम्हारा

पर, थोड़ी सी फर्ज निभा लो

थोड़ी सी पहचान बचा लो।


कल थी बेटी, आज बहु हो

सास बनोगी फिर तुम इक दिन

जो किरदार निभाओगी तुम


दुहरायेगा भावी पीढ़ी  

हाथ तुम्हारे हीं है डोरी

चाहे तोड़ो गांठ बना लो 

थोड़ी सी पहचान बचा लो।


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