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Amresh Kumar Labh

Abstract

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Amresh Kumar Labh

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मैं यायावर

मैं यायावर

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चाहता हूँ मैं भी

अपने रूढ़िवादी कवच को तोड़

थाम लूँ हाथ अपने प्रगतिशील मित्रोँ का

उद्घोष करूँ नारीमुक्ति का।


औरत जब किसी और की होती है

मुक्त नारी खूब जँचती है 

पश्चिमी परिधान

बिना सिंदूर की मांग


सूनी कलाई

अलहड़ अंगराई

उम्र पचपन की

षोडशी सी दिखती है।


मगर अपनी औरत

इस रूप में बिल्कुल नहीं फबती है

जब घूरते लोगों में देखता हूँ

रूप अपना ही

नज़र भी अपनी ही


कैद कर देता फिर उसे

अपने ही घर में

हिफाजत के नाम पर

जाग जाता फिर वही पुराना विचार।

मैं यायावर !


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