कौन चाहता करें पलायन
कौन चाहता करें पलायन
किसे नहीं भाता अपना घर
रहना अपने मात-पिता संग
छोड़ मोह बीबी बच्चे का
कौन चाहता करें पलायन !
बिलख रहे भूखे बच्चे को
डपट सुलाना बड़ा कठिन है
घर में रहे कुँवारी बिटिया
स्थिर ठहरना बड़ा कठिन है।
पावों के छालें गवाह हैं
रोजगार दुर्लभ कितना है
लाचारी जितनी है जिसकी
बेबस का शोषण उतना है।
साहूकार के फलते धंधे
चीख-चीख यह बता रहा है
मर गए कितने भूखे नंगे
चंगुल में पड़ जता रहा है।
आजादी के भ्रम में पड़के
दुखी हृदय पर पत्थर धरके
निकल पड़े परदेश कमाने
खटक रहे जैसे बेगाने।
रंग सियासत का यह कैसा
प्रान्त-प्रान्त में भेद कराए
कैसे राष्ट्र अखण्ड रहेगा
आवाजाही जब नहीं भाए।